आश्रमवाणी
शिक्षा संस्थाएँ ज्ञान गंगा हुआ करती है। यह जीवन के अंधकार को मिटाती है और वैभव एवं ऐश्वर्य से जीवन मे प्रकाश को फैलाती है। शिक्षा व्यक्ति की जड़ता को समाप्त कर उसमे गतिशीलता लाती है और उसके भूअवतरण के उद्देष्य को सार्थक करती है । शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारती है तथा उसे समाज एवं राष्ट्र के लिए उपयोगी एवं महत्वपूर्ण बनाती है। आज अधिकांश शिक्षण संस्थाएँ केवल धनोर्पाजन का माध्यम बनती जा रही है, पठन-पाठन औपचारिक एवं महत्वहीन होता जा रहा है। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि समाज को अच्छे नागरिक मिलने में बहुत कठिर्नाइयो का सामना करना पड रहा है। समाज का यह बिगड़ता स्वरूप निश्चित ही दुःखद है एवं घातक है।
ऐसी विषय परिस्थितियो में समाज और राष्ट्र के रक्षार्थ सनातन धर्म एवं उसकी संस्थाएँ सदैव ही आगे आती रही है। उसी परम्परा के निर्वहन मे देवाश्रम शिक्षण संस्थान अपने संस्थानो के माध्यम से समाज और राष्ट्र को मजबूत एवं स्वावलम्बी बनाने के लिए निरन्तर प्रयास कर रही है। र्नइ सदीं में अनान्य नई चुनौतियो का सामना करने के लिए हमने शिक्षित एवं संस्कारी युवा तैयार करने की जिम्मेदारी उठा रखी। युवाओ मे एक रचनात्मक दृष्टीकोण एवं राष्ट्र और समाज के प्रति जिम्मेदारी एवं समर्पण की भावना को जागृत करने का निःस्वार्थ भाव से प्रयास हमारी यह उच्च षिक्षा की संस्थान कर रही है। अपनी शिक्षण संस्थाओ से हमारी अभिलाशा समाज और देश के लिए अच्छे नागरिक उत्पन्न करने की है, न की धनोपार्जन करने की। देवाश्रम शिक्षण की यह वरिष्ठ शाखा शिक्षा का नया आयाम तैयार करने में सतत् प्रयासरत् है। महाविद्यालय के प्राचार्य, अन्य प्रशासनिक अधिकारी, अध्यापक एवं कर्मचारी निरन्त अपने योगदान से समाज को परिष्कृत करते हुए समृद्ध एवं वैभवशाली राष्ट्र के निर्माण में निःस्वार्थ भाव से लगे हुए है। महाविद्यालय परिवार के प्रत्येक सदस्य एवं छात्र/छात्राओ को उत्तरोत्तर उन्नति करने के लिए मेरा बहुत बहुत साधुवाद है।
Wishing you all a Bright & Prosperous future. Jai Hind!
महंत अभयानंद गिरी जी महाराज
(Manager)